वात्सल्य माँ का
वात्सल्य माँ का
माँ तो सिर्फ माँ होती है
हो चाहे पशु-पक्षी की
पथ की ठोकर से बचाकर
रक्षा करती बालक की
हाथ थाम चलती शिशु का
पल-पल साथ निभाती है
थोड़ा-थोड़ा दे कर ज्ञान
जीवन कला सिखाती है।
विस्तृत नीले आकाश सी
धरती सी सहनशील होती
टटोल कर बालक के मन को
आँचल की घनी छाँव देती
पीड़ा हरती बालक की
खुशियों का हर पल देती
पिरो न सकें शब्दों में जिसे
माँ ऐसी अनमोल होती।
रचना माँ से सृष्टि की
माँ जननी है विश्व की
अद्भुत है वात्सल्य माँ का
माँ से तुलना नहीं किसी की
बेटी, बहन, पत्नी बनकर
चमकाती अपने चरित्र को
माँ बनकर सर्वस्व अपना
देती अपनी संतान को।