खुशियाँ
खुशियाँ
सारी खुशियाँ थी मेरी मुठ्ठी में जहाँ,
भला वो खुशियाँ मिलती हैं और कहाँ।
वैसे आज कहने के लिए लोग भरपूर है,
असली में दिल के करीब नहीं बल्कि दूर हैं।
दिखाने के लिए तो ग्रुप फोटो है बहुत,
लोगों की नजरों भी दिखता है बहुत खूब।
बचपन के गिने चुने दोस्तों में जो खुशियाँ थी,
वो खुशियाँ है और कहाँ।
आम बागों से मैं चुराता पर मार वो खाते,
हम हर आम के बराबर ही हिस्से बनाते।
पानी में गोते लगाकर मस्ती करते रहते थे
एक दूसरे को ही पानी में भिगोते रहते थे।
सुबह शाम हो जाती थी जहाँ,
वो खुशियाँ और कहाँ।
मोल नहीं जिसकी वो दोस्ती है अनमोल
फोटो तो नहीं पर यादें बोले दिल की बोल।
जमाना बदला, लोग बदले हम भी बदल गए,
समय के साचें में हम भी खुद ही ढ़ल गए।
मुश्किल है मिलना फिर से वो कारवां,
भला वो खुशियाँ और कहाँ।