सुंदर औरत
सुंदर औरत
रोज़ तिल तिल कर मरती है सुन्दर औरत
अपनी आँखों में खटकती है सुन्दर औरत
जब भी उसकी ख़ूबसूरती को घूरती हैं है वहशी नज़रे
हो जाना चाहती हैं तन से कुरूप सुन्दर औरत
सुन्दरता अभिशाप बन कर डंसने लगता है
खुद को आंसुओं से धो डालती है सुन्दर औरत
उसे भी पसंद है उन्मुक्त और स्वछन्द हंसी
हंसी और फंसी के जुमले में घुट जाती है सुन्दर औरत
सुन्दर मन विलुप्त हो जाता है सुन्दर तन के आगे
मन से सुन्दर बनना चाहती है सुन्दर औरत
वो सिर्फ तन नही एहसासों की भी मूरत है
चीख चीख कर बताना चाहती है सुन्दर औरत