फ़लसफ़ा उम्र का
फ़लसफ़ा उम्र का
ख्वाहिशों का बोझ लिए
एक उम्र तमाम गुजर जाती है।
बचपन, जवानी और बुढ़ापा
एक दिन मौत के आँगन में उतर जाती है।
क्या खोया, क्या पाया सब व्यर्थ
तासीर भी जब खुद से मुकर जाती है।
सारे सपने, सारे इरादे, सारे जज़्बातें
उम्र की पेंचदार सीढ़ियों में बिखर जाती है।
दौलत, शोहरत, नाम, इज़्ज़त सब तो
एक झोंके की तरह बस छू के चली जाती है।