ग़ज़ल
ग़ज़ल
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२१२ २१२ २१२ २१२
ग़ज़ल
इश्क क्या कर लिया बेकसी हो गई
दर्दे दिल की जुबाँ शाइरी हो गई।
इश्क मे हद तलक मुब्तला हो गया
खुबसूरत मेरी ज़िंदगी हो गई।
साथ फूलों के काँटे भी निभते रहे
अब गमों से भी कुछ दोस्ती हो गई ।
वो तो समझे मेरे इश्क को बस मज़ाक़।
जो थी दिल की लगी दिल्लगी हो गई।
उनके क़दमों की आहट का ये था असर
फिर अँधेरे में भी रौशनी हो गई।
उसके अहसास ने जबसे मुझको छुआ
दिल की बंजर जमीं शबनमी हो गई।
कुछ तो बदली सी लगती है आबो हवा
निस्बतों मे वफ़ा की कमी हो गई।
चाँद देखा किये छू न पाये कभी
"गीत" अपनी यही बेबसी हो गई।