एहसास
एहसास
भौतिकता के इस युग में यह कैसा विकास है
जज़्बात गुम हो गए बस रिश्तों का एहसास है
डिजिटल क्रांति ने दूरियों को मिटा दिया
पर करीबी रिश्तों में फ़ासला है ला दिया
सोशल मीडिया पर खुशियों के पल कैद हैं
निजी जिंदगी में भले आपस में मतभेद हैं
आई फ़ोन, लेटैस्ट गजेट्स, सात अंकों में आय
आज यही बन गए हैं प्रतिष्ठा के पर्याय
दुधमुंही बच्ची के लिए समय नहीं माँ के पास
नन्ही दिन भर करती है माँ की गोद की आस
स्कूल से लौटे बच्चे का ताला स्वागत करता है
घर के सूनेपन को वह टी वी से भरता है
व्हाट्सप्प के जरिये जाने कितनों से सब जुड़े हैं
पर घर पर सब के चेहरे मोबाइल पर गड़े हैं
फोटो हजारों खींचते हैं पर देखने का समय नहीं
बाहर हँसते बोलते घर पर किसी को फ़ुर्सत नहीं
पर्सनल स्पेस का कन्सैप्ट है जब से आ गया
लोगों के बीच आपस में दीवार सा उठा
विकास की बुलंदियों को आज हमने छू
पलटकर देखा नहीं क्या कुछ हमने खो दिया !