रात ख़ूबसूरत है..
रात ख़ूबसूरत है..
रोज़ रात को कानों में
यादें है लोरियां सुनाती
रात ख़ूबसूरत है
नींद क्यूँ नहीं आती।
जब आसमा की आगोश में
तारों की बारात निकलती है
जब चाँद दूल्हा बनता है
चांदनी पिघलती है।
जब हौले हौले मयकशी
जाम का ख़ुमार चढ़ता है
जब हर्फ़ हर्फ़ जोड़कर
इलाही कलमा पढ़ता है।
तब कहीं चुपके से कोई
ग़ज़ल मुझे है छेड़ जाती
रात ख़ूबसूरत है
नींद क्यूँ नहीं आती।
जब फ़सल के लहाने को
इक माली तरसता है
जब बंजर जमी में भी
बिन मौसम इश्क़ बरसता है।
जब चांदनी विदा होकर
फिर चाँद के घर को जाती है
जब दिन की ज़िन्दा सी दुनिया
रात में मर जाती है।
तब सफ़हों पर घसीट कर
मेरी कलम मुझे है जगाती
रात ख़ूबसूरत है
नींद क्यूँ नहीं आती।