प्यारी नक्कु
प्यारी नक्कु
एक छोटी-सी बच्ची थी,
जब पहली बार उसे देखा था।
इतनी सुन्दर, इतनी प्यारी,
कभी किसी को न देखा था।
कमल नयन और कोमल तन,
तितली-सी चंचल वो हरपल।
मधुर वाणी से सुसज्जित लब
और तन में बसा एक सुन्दर मन।
पहली बार पास आई थी,
बुझे हुए मन में, उमंग की दीप जलाई थी।
अब हर रोज़ उसके पास जाना था,
रूठे हुए परी को मनाना था।
उसे सबसे अलग दिखाना था,
एक छोटा-सा रिश्ता बनाना था।
वो वो नहीं, जो सब होते हैं,
दुनिया को यही दिखाना था।
मैं ये भूल गया था,
बड़ी गंदी है दुनिया की नज़र।
त्याग भरे रिश्तों को भी,
बना देगा वो गलत।
वह टूटकर खुद में कैद हो गई,
एक गहरी नींद में सो गई।
मैं आज भी उसी को ढूंढ़ता हूँ,
पर मेरी नक्कु,
ज़माने की भीड़ में न जाने कहाँ गुम हो गई।