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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

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नवल पाल प्रभाकर दिनकर

Drama

प्रकृति और अन्धेरा

प्रकृति और अन्धेरा

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प्रकृति और अन्धेरे का

हुआ है अद्भुत मेल,

गौधूली के समय से ही

लगे हैं खेलने अपना खेल ।


कभी लेता आगोश में अपने

कभी चूमता इसका तन

छा जाता है इसके ऊपर

ढक लेता सारा मधुबन


पेड़ पौधे हरियाली सारी

रंग जाती इसके रंग में

लगा कर सिरपे अपने तेल ।

गौधूली के समय से ही

लगे हैं खेलने अपना खेल ।


जीव जन्तु निकलते हैं बाहर

जब आता अन्धेरे पर निखार

घुम-घुम कर ही ये जन्तु

देते हैं अपनी रात गुजार


पेड़ पौधे सारे चुप्पी साधे

देखते हैं मधुर मिलन को

पेड़ों से चिपक जाती हैं बेल।

गौधूली के समय से ही

लगे हैं खेलने अपना खेल ।


ज्यों-ज्यों जवां होती है रात

जो प्रेमीजन नही होते पास,

रोते हैं मधुर मिलन को देख

उठा आसमान में हाथ

छत पे सीधे लेटे हुए


देखते आसमान के तारों को

मन में नही होता उनके चैन

गौधूली के समय से ही

लगे हैं खेलने अपना खेल ।


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