अकेलापन
अकेलापन
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झुक गया वहां आसमां
जहाँ पलछिन किनारा था
सूरज की लालिमा का वो
अद्भुत नजारा था |
क्या उसे मैं भूल जाऊँ ?
जिसको मैं निहारा था,
जहाँ किनारे पर खड़ा
वो बेचारा था |
फटे वसन में लिपटा हुआ
वो दर्द हमारा था
क्यूँ मिला अभिशाप
उसने क्या बिगारा था ?
सूरज को नहीं , मैंने उस
लचर को निहारा था ,
सुनी पड़ी थी आँखें
फूटा भाग्य का पिटारा था |
अपने नहीं थे जिनके
लहरों का सहारा था,
दुःख – दर्द बाँटने हेतु वो
पलछिन किनारा था |
वो टूट चूका था दिल से
जिंदगी से हारा था
क्या अकेलेपन को ही
ये जन्म दुबारा था |