अपनी नयनों के पट खोल
अपनी नयनों के पट खोल
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।
डेमोक्रसी की यही पहचान,
जाने जनता यही है ज्ञान।
कि कहीं थूक सकती है वो,
कि कहीं मूत सकती है वो।
जनता की परिभाषा गोल,
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।
सर नापे सर मापे नेता,
जनता के सर जापे नेता।
ज्ञानी मानी व नत्थू खेरा,
सबको एक ही माने नेता।
नम्बर का हीं यहाँ है मोल ,
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।
पढ़ते बच्चे बनते नौकर,
गुंडे राज करते सर चढ़ कर।
राजा चौपट ,नगरी अन्धी,
न्याय की बात तो है गुड़ गोबर।
सारा सिस्टम है ढकलोल,
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।
ज्ञान का नहीं है कोई मान,
ताकत का है बस सम्मान।
जनता लुटे , नेता चुसे,
बची नहीं है इनकी जान।
कोई तो अब पोल दे खोल,
अपनी नयनों के पट खोल,
झब्बर बकरा बोले बोल।
खुल गयी डेमोक्रेसी की पोल,
कि धूर्त नेता जनता बकलोल।