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Raja Sekhar CH V

Drama

3  

Raja Sekhar CH V

Drama

अभिलाषा

अभिलाषा

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कब होगा यह जीवंत जन्म सार्थक,

दिनोदिन जीविका प्रणाली

लग रही है निरर्थक।

दैनिक है एक प्रकार प्रक्रिया,

अनंत लग रहा है यह क्रियाशील क्रिया।


श्रवण हो मधुर सुमधुर संगीत,

सदैव साथ रहे मेरे मन का मीत।

खोज रहा हूँ एक मनोरम स्थल,

अनवरत प्रवाहित हो जहाँ

निर्मल निर्झर जल।


रहें मेरे पास दो गायें,

प्रणय गीत गाए

गाए सभी दिन बीत जाएँ।

निवास के चारों ओर

हरा-भरा हो हर तरु लता,


नित्य पठन हो जहाँ

रम्य रामायण भव्य भगवद्गीता।

हर दिन पठन हो

श्री जगन्नाथ सहस्रनाम

श्री जगन्नाथ अष्टकम,


हर दिन पठन हो

जगतगुरु श्री आदिशंकराचार्य

कृत साधनापंचकम।


आशाएँ आकांक्षाएँ हैं

जैसे अनंत आकाश,

सच हो तो मिलेगा

अपने अस्तित्व

व्यक्तित्व को प्रकाश।


दे सकूँ विद्यार्थियों को

शिक्षा प्रशिक्षा,

इस मनोरथ का

बहुत दिनों से है प्रतीक्षा।


क्षीण हो रहा है

सामाजिक व्यवहार,

सब कुछ लगा रहा है

मिथ्या मायावी संसार।


माता-पिता की सेवा है

सर्वश्रेष्ठ सेवा,

वरिष्ठ घनिष्ठ हैं गौ सेवा

गुरुजनों की सेवा।


सांसारिक बंधन हेतु

निभाना होगा कर्त्तव्य,

संतति हेतु अतिशय

व्यय करना होगा अपना समय।


मनोबल के लिए

कर रहा हूँ समीक्षा,

मनोकामनाओं के पूरण के लिए

कर रहा हूँ अपेक्षा।


मन में छुपी हुई है

एक-एक अभिलाषा,

दे नहीं सकते

सभी की परिपूर्ण परिभाषा।।


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