लड़की हूँ तो क्या हुआ
लड़की हूँ तो क्या हुआ
पापा की गोद में खेलती हूँ मैं
मम्मी के आँचल में छिपती हूँ मैं
लोग 'पराया धन' कहते हैं मुझे
लड़की हूँ तो क्या हुआ
माँ बाप के बुढापे का सहारा हूँ मैं।
भाई से शरारतें करती हूँ मैं
बहन को परेशान करती हूँ मैं
लडके को 'आँखों का तारा' कहते हैं सभी
पर लड़की हूँ तो क्या हुआ
सब के आँखों का तारा हूँ मैं।
सारे घर को संभालती हूँ मैं
फिर भी सास के ताने सुनती हूँ मैं
बहु को बेटी नही कहता कोई
लड़की हूँ तो क्या हुआ
घर की लक्ष्मी हूँ मैं।
मुझ बिन न हो घर मे उजियारा
फिर भी मुझ ही को क्यों कोसे जमाना सारा
लोग बने कोख में पलती लड़की के हत्यारें
आखिर में किसी की बहन, किसी की बेटी हूँ मैं
लड़की हूँ तो क्या हुआ
मुझे भी जीने का हक हैं
लड़की हूँ तो क्या हुआ
मेरी भी संवेदना, मान और सम्मान है
लड़की हूँ तो क्या हुआ
मेरे बिना सुना यह सारा संसार हैं॥