संग्राम करो !
संग्राम करो !
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है रीत यही इस दुनिया की
कुचले जाते, जो है समान
इस भीड़ का हिस्सा होकर भी
अपनी अलग पहचान करो ...
अपनी धरा के तुम ही नायक
ख़ुद खेवैया,ख़ुद ही सहायक I
शत्रु सी हर एक चुनौती को
कर पराजित, अभिमान करो...
संग्राम करो .... संग्राम करो
वो है मानव, जो रुके नहीं
शीश कटे, पर झुके नहीं
ख़ुद से किये हुऐ वचनों का
अपने प्राणों से सम्मान करो ...
पर्वत सी अपनी छाती कर
शोषितों के लिए संग्राम करो
बन राम, हर अहिल्या के
अपमानों का पिंडदान करो !
संग्राम करो ... संग्राम करो !!