याद है मुझे
याद है मुझे
उस घनी छांंव वाले पेड़ के नीचे,
दोपहर की तेज़ तपती धूप में,
बहती मंद गति हवाओ संग,
हिम्मत को लिए हिरासत में
बेखौफ बेझिझक चाल में,
पगडंडी रास्ते से होकर,
अकेले बड़ी शराफत के साथ,
खबर किये बिना,
किसी काम का करके बहाना,
याद है मुझे
रोज़ तेरा मिलने आना
वो खण्डहर दरारों बाली दीवारों की घर मे,
किसी झरोखे से झांकते धूप के कहर में,
मकड़ी के बने जाले के नीचे पड़ी टूटी चेयर में,
बालो में हाथ फेर गुफ्तगू करना किसी के डर में,
कंधो पर रख सर विन कहे सबकुछ समझाना,
बिछडने के डर से तेरा घबरा जाना,
वो तेरा जमाने की निगाहों से देखना,
लाख सोचकर भी खुद को न रोकना,
गर हो आहट कोई तो यू ही घबरा जाना,
खामोश चेहरा, झुकी पलके ,नम आंखे,
बया करती मोहब्बत के अहसासों को,
दिल को धड़कने का रास्ता बताकर,
जैसे कर दिया हो आज़ाद सांसो को,
मोहब्बत के आईने में देख,
फिर लंबी लंबी राहत भरी सांसे लेना,
याद है मुझे
जाते - जाते मुड़ - मुड़कर
तेरा देखना...!