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Saurabh Sharma

Drama Romance

4  

Saurabh Sharma

Drama Romance

मैं फ़र्द हूँ अपनी मशिय्यतों क

मैं फ़र्द हूँ अपनी मशिय्यतों क

2 mins
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मुझ से क्या पूछते हो,

पता इश्क़ की उन बस्तियों का,

मैं ख़ुद भटका हुआ हूँ,

उसकी वीराना गलियों में।


नहीं रहती हैं अब मुझे,

ख़बर कोई मोहब्बत के चौराहों की,

महक ख़त्म हो चुकी है,

मेरी सब इन खीज़ा की कलियों में।


मोहब्बत मेरी एक तरफ़ा ही थी,

तो क्या हुआ ओ मेरे हुज़ूर,

उसकी कोस-ए-कज़ा में,

रंगीनियाँ आज भी उतनी ही हैं।


मैंने तो तबियत से किया था,

इश्क़ उनसे वफ़ा के साथ,

मगर नफ़रते उनके जवाँ दिलो में,

शिद्दतों से आज भी उतनी ही हैं।


गाहे ज़िंदगी में साँस ना मिले तो,

कजा आ ही जाती है,

मगर उनकी इनयात एसी रही हम पर,

जो दिल पर हुकूमत उनकी आज भी उतनी ही है।


मैं फ़र्द हूँ अपनी मशिय्यतो का,

मेरी फ़ितरत, मेरा आग़ाज़,

मेरी राह-गुज़र हो तुम।


मेरी तिशनगी, मेरा ग़ुरूर,

मेरा घर बार हो तुम,

मेरा ख़ुल्द, मेरा फ़रोग़,

मेरी मोहब्बत की गुलज़ार हो तुम।


मेरा हर इबारत, मेरी हर इनायत,

मेरी हर इबादत तेरे ही लिए है,

अब्र से ज़मीन तक, सब्र से सुकून तक,

ये सब मेरी कायनाते तेरे ही लिए है।


समंदर सा गहरा ये इश्क़ मेरा,

गहरी मेरे दर्द की दास्ताँ भी है,

मंज़िल मेरी तू ही है साथी,

और भटका हुआ मेरा तू रास्ता भी है।


सोच में ही रहती हो तुम,

ये दिल का मेरे मुझ से है कहना,

हमदर्द कभी, हमसाया कभी,

हमनवा जैसा तुझसे वास्ता भी है।


बेहतर है मोहब्बत मेरी,

बस आज़माना ही तेरा रह गया है,

कयी दफ़ा ये अल्फ़ाज़ो का दरियाँ आँखो से,

मेरी बह भी गया है।


मुक़द्दर में हो भी या तुम नहीं मेरे,

मगर मैंने तो बस तुम्हें ही चुना है,

इश्क के पढ़ के वजिफ़े बस,

तुझको ही ख़ुद में बुना है।


कभी लिखता हूँ, कभी गाता हूँ,

कभी महफ़िल में नज़्में सुनाता हूँ,

तालीम तेरे इश्क़ की पाने को मैं,

हर रोज़ तेरी तस्वीर से बतियाता हूँ।


चल इंतज़ार रहेगा तेरे फिर आने का मुझे,

रब की इस आज़माइश में ख़ुद को झोंक लेता हूँ मैं,

दीदार होगा कभी ना कभी तेरा मुझे,

इसी ख़याल को हर बार की तरह सोच लेता हूँ मैं।


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