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Kapil Jain

Others

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Kapil Jain

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देह के समीकरण

देह के समीकरण

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देह के समीकरण भी
कितने अजीब होते हैं
यूँ तो एक और एक
हमेशा ही दो होते हैं
पर, देह के सन्दर्भ में
यह गणित बदल जाता है
एक और एक दो न होकर
बस एक हो जाता है
कुछ लोगों का कहना है ,कि .........
प्यार के लिऐ 
देह ज़रूरी ही नहीं पर ,
प्यार की अभिव्यक्ति
देह से ही होती है
मुखरित
प्यार के स्पंदन को
देह ही देती है जीवन
इसलिए नाराज़ मत होना
अगर, मैं कहूँ,
कि .......
मैं तुम्हेंं आधा-अधूरा नहीं,
संपूर्ण प्यार करता हूँ.
तुम्हारी आत्मा के साथ-साथ ...
तुम्हारे शरीर से भी प्यार करता हूँ .


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