वो सपनों से सुन्दर दिन
वो सपनों से सुन्दर दिन
सुन ओ नीलगगन के प्यारे,
पंछी मुझको तू बतला रे !
कहीं बचा क्या मुझे बता दे ?
निश्छल, निर्मल प्रेम सखा रे !
मुझे बता तू अनुभव अपने,
कितने सच थे सुन्दर सपने ?
अपनापन दर्शाते सब में,
कितने पाये सच में अपने ?
बता कहाँ वो छाया पाई ?
जिसने तेरी थकन मिटाई !
और तेरे स्वागत के हेतु,
किसने बढ़कर की अगुवाई !
कहीं मिली क्या प्यारी अम्मा ?
तेरा भोजन थाल सजाती !
चिंतित हो तेरी तृष्णा से,
मिट्टी का जल-पात्र भराती !
क्या अब भी सुन तान सुरीली ?
तरुवर झूम-झूम जाते हैं !
औ हवा के झोंको के संग,
बाँहें अपनी लहराते हैं !
मुझको दिखते नहीं दूर तक,
वो मनमोहक दृश्य सुहाने !
नयन नीर छलका जाते हैं,
बचपन के वो दिन मस्ताने !
तुझे पकड़ने दौड़ा करती
औ गिर जाने पर रोती थी !
देख घोंसले में नन्हों को,
पर मैं कितना खुश होती थी !