चाहत
चाहत
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गुज़रे हुए कल के सदाबहार रिश्ते
बरसों की धूल में लिपटे,
पहचान के बचे-खुचे सूत्रों को
दरकिनार कर,
नजरें चुराते,
दामन बचाते,
अतीत हो गए।
हाथों की लकीरों में सिमटे
जाने-अनजाने चेहरों से
एकांत चुराकर
तुम्हें तुमसे भी छुपाकर,
शाम के धुंधलके में,
प्रेम की लौ-लगन से,
मन की सूनी बारादरी में
अावारा मुसाफिर-सी भटकती,
तेरी यादों को गलबहियां डाल
आज एक बार फिर
तुमको जिया है मैंने।