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Ratneshwar Thakur

Drama

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Ratneshwar Thakur

Drama

बेवा बुढ़िया की कहानी

बेवा बुढ़िया की कहानी

1 min
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कुछ कटे फटे से कपड़े उसके,

और पथराई आँखों का पानी

मुरझाये पत्तों सी शक्ल जिसकी

और, जीना जिसका था बेमानी !


मर गयी जो रूह,

जीते जी दुनिया में दिलवालो की,

उस बेवा बुढ़िया की है ये कहानी !


सर्द रातों मैं समेटे खुद को,

सड़क किनारे कुछ यूँ थी वो पड़ी,

मानो रख गया कोई,

जर्जर्र कपड़ो की कोई गठरी बड़ी,

बसी थी किस्मत में

जिसके सिर्फ गुमनामी

उस बेवा बुढ़िया की है ये कहानी !


हर मुसाफिर गुज़रा बगल से उसके,

हर किसी की पड़ी उसपे नज़र,

पर किसी ने ना पूछा हाल उसका,

ना जाना किस नियति का था असर,

हर रात जिसको थी ठिठुर के,

सिर्फ करवटों मैं बितानी,

उस बेवा बुढ़िया की है ये कहानी !

कितना पढ़े हम,

फिर भी अधूरा रहा ज्ञान

ना समझी मानवता चाहे जग ने पढ़ा हो विज्ञान,

सब होता महसूस सिवा उस दर्द के हमे

जिसकी है ये कहानी !




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