बेटा जीत गया
बेटा जीत गया
बेटा जीत गया
बाप हार गया
माना की जनता बेवकूफ़ थी
ये तो सिर्फ फुक मात्र थी।
कितनी आसानी से सब एक हो गए
अपने कुनबे की किस्मत खोल गए
सब को पता है "एक कुटुंब का राज़ क्या होता है"
सता का लोभ कितना बुरा होता है।
मर्ज़ी आयी उसको उठा लिया
सरे आम क़त्ल और जमीं को हथिया लिया
सगीरा को सरे आम बेआबरू करके मरवा दिया
समाज के ठेकेदारों ने किसी को भी अगवा करवा लिया।
सरकारी खजाने को अपना समझा
जिसको लगा दिल से उसको खुले मन से बांटा
कोई कायदा कानून नहीं कोई शर्म नहीं
धर्म के नाम पर, जाती के नाम पर शासन यहीं।
बेटा, बेटी, चाचा और चाची
और अब तो बहू साथ में समूची जमात
मानो लूट का माल बहार नहीं जाने देना है
कोई सर उठाये तो बस सर कलम कर देना है।