मन करे।
मन करे।
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उखाड़ फेक डालू
पत्ते उस डाली के
जो अपने संग
मोसम ले आये पतझड़ वाला।
हरे पिले
पके अधपके
या नाजुकसी वो टहनी
जो शीश झुकाये
डोल रही थी
एहसास दिला रही थी
अपने संग संग
बहती हवा के झोकों का।
क्या ये वो ईशारे थे
जो मुझे समझ लेने चाहिये थे
के पकृती और परिवर्तन
यही रित तो सिखाती है हमे
जीसे हम दुनीयादारी कहते है।
सवालो के भंवर मे
अनजान, बेगाना मन
जीसे दुनीयादारी ही ना समझी
फसता गया फसता गया
हम क्यो यैसे है नादान