भारतीय किसान
भारतीय किसान
भारतीय किसान
किसान बचे बिन भारत बचे नहीं, यह नियम है अटूट ।
दुर्गति इसकी कई सदी पुरानी, क्योंकि शिकार यह फूट ।।1
पैंसठ प्रतिशत आबादी भारत, खेतीबाड़ी बस काम ।
सीधे-साधे सरल चित् सुनो, रहें बिना किसी तामझाम ।।2
भारतीय अर्थव्यवस्था रीढ़े ये, कब समझेगी यह सरकार ।
किसान के ही पीछे सभी पड़े हैं, शोषित वह प्रत्येक प्रकार ।।3
अन्य सभी वर्ग खुशहाल हैं, छोड़कर केवल किसान ।
लाभ कहीं न कहीं कमा ही लेते, अल्पांश से व्यवधान ।।4
किसान का जीवन नरक बना, पग-पग पर इसका शोषण ।
सर्वाधिक मेहनती होने पर भी; गंवार, देहती दोषारोपण ।।5
किसी भी पल कोई चैन नहीं है, केवल यहां पर किसान ।
धन, दौलत, इसकी अस्मिता लूटने को, बने हैं सभी शैतान ।।6
सर्दी, गर्मी, बरसात हो, कैसा भी मुश्किल मौसम ।
कड़ी मेहनत से किसान हटे न पीछे, हँसता रहे झमाझम ।।7
किसान की ड्यूटी चैबीस घण्टे, कौन दुनिया में ऐसा व्यवसाय ।
फिर पल्ले नहीं फूटी कौड़ी, हर स्थिति यह असहाय ।।8
लोकतान्त्रिक या साम्यवादी हों, फासीवादी या राष्ट्रवादी ।
सैक्यूलर कहे जाने वालों ने, किसान गुलाम कीमत बतला दी ।।9।
सबने अपना काम ही निकाला, किसान से करके वायदे ।
हित किसी ने न देखा किसान का, सबने देखे अपने फायदे ।।10
किसान आज भी गुलाम भारत में, सात दशक हुए व्यतीत ।
सुध नहीं ली किसी ने इसकी, हार मिली सदैव-नहीं जीत ।।11
नेता, धर्मगुरु, उद्योगपति सुनो, दुश्मन किसान के व्यापारी ।
बेसहरा बनाकर रखा किसान को, सदैव कोड़े पड़े सरकारी ।।12
स्वार्थ साधन हेतु सभी लगे हैं, मौका केवल नहीं किसान ।
सरकारें इसकी दुश्मन सदैव से, मदद भी न करता भगवान ।।13
हाड़तोड़ मेहनत के बदले में, भर नहीं पाता किसान का पेट ।
चहुंदिशि बर्बादी इस हेतु है, होना निश्चित मटियामेट ।।14
पौष्टिक भोजन भी पहुंच से दूर, नहीं पहनने को उचित कपड़े ।
चिकित्सा व शिक्षा की नहीं व्यवस्था, फंसा रहता कोर्ट के झगड़े ।।15
खेतीबाड़ी बनी मौत किसान की, सीमा पर उसका सैनिक-पुत्र ।
इनसे भलि तो उनकी भी जिंदगी, उठाते हैं जो मलमूत्र ।।16
क्रांति-व्रंाति बात दूर की, खाने-पीने के पड़े हैं लाले ।
बंधुआ मजदूर सभी समझें इसको, फिर कोइ क्यों इसे संभाले ।।17
अपने हिस्से का लाभ मिलता सबको, किसान ही क्यों है वंचित ।
किसान दबा है कर्ज के नीचे, अन्यों के पास दौलत है संचित ।।18
सरकार, संगठन, उपदेशक सुनो; धर्मगुरु भी दुश्मन किसान ।
किसान संगठन भी दुश्मन इसके, सब समझें इसे नादान ।।19
सबसे मेहनती होने पर भी, किसान के हिस्से क्यों गरीबी ।
दूर-दूर सब हटते किसान से, कोई नहीं इसका करीबी ।।20
सर्वाधिक शोषण सात दशक में, हुआ है सुनो किसान ।
यह तो बर्बाद होता ही आया है, बर्बाद है इसकी संतान ।।21
लाभ किसान को होना न चाहिए, सुन लो एक आन्ने का ।
समुद्र में चाहे पड़े फेंकना धन-दौलत, नियम यह जमाने का ।।22
सभी दलों की सरकारों ने, धोखा दिया है किसान को ।
असहाय था-बर्बाद है सुनो, खोया है मान-सम्मान को ।।23
जिसको देखो विरोधी किसान का, इसको मूर्ख बतलाए ।
मौका मिला जिसको भी यहां पर, किसान के घाव दहलाए ।।24
सरकार, संविधान किसान विरोधी; व्यवस्था किसान विरोधी ।
काल बनकर यह उभर सकता है, बन जाए यदि यह प्रबोधी ।।25
षडयन्त्र ऐसे चल रहे हैं, खेती को छोड़ दे यह करना ।
मल्टीनैशनल कम्पनियां छीने जमीन को, शुरू हुआ इनका उभरना ।।26
अब तक सबका प्रयास यही रहा, किसान पड़ा रहे नरक में ।
दो सदी का अध्ययन परख लो, न लगता यह तथ्य फर्क में ।।27
जागना ही एकमात्र चिकित्सा, संगठन बने मजबूत ।
खेती से लाभ इतना मिल सकता, सम्पत्ति एकत्र अकूत ।।28
किसान अपनी फसल खुद ही बेचे, मंडियों में जा-जाकर ।
दलाल रहे नहीं कोई मध्य में, सारा लाभ रहेगा फिर आकर ।।29
किसान को एक रूपया मिलता है, दस कमाते हैं दलाल ।
ऐसे में उद्धार हो कैसे किसान का, रहेगा सदैव वह कंगाल ।।30
कीमत भी खुद अंकित करे, सीधे उपभोक्ता को बेचे सामान ।
पांच वर्ष में मालामाल हो जाए, सुनो भारतवर्ष का किसान ।।31
-आचार्य शीलक राम