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Mahak Garg

Inspirational

4.6  

Mahak Garg

Inspirational

दर्द- ए-दास्ताँ

दर्द- ए-दास्ताँ

2 mins
358


जिस दुख की उस बच्ची ने

कल्पना भी न की थी

एक ऐसी साज़िश रची थी

न जाने क्यों उसकी किस्मत में 

विधाता ने ऐसी विधि लिखी थी।


कांप रही थी, तड़प रही थी उस रात

सड़क पर एक कोमल सी काया

सब तस्वीरें खींच रहे थे

पर कोई चुन्नी ओढ़ाने तक न आया ।


देश की बेटियों पर 

ये कैसा अत्याचार हुआ

किसी की इज्जत न बचा सके

ये कैसा मुल्क लाचार हुआ।


अरे बाहर की तो छोड़ो 

अब तो घर में ही दरिंदे बैठे हैं 

किसी की इज्जत नोंचने को

लोग जगह-जगह खड़े रहते हैं।


चलो मान लिया कि गलती कपड़ों की हैं 

पर उसने तो सलवार कमीज़ पहना था

वो भी दुपट्टे के साथ 

और दूसरी ने तो बुरखा पहना था

फिर क्यों लगाया गया उसको हाथ।


क्यों उस बाप को दोष देते हो

जो भ्रूण में अपनी बच्ची को मार दे

कैसे ला पाएगा वो उसे ऐसे समाज में 

जो इन बेटियों को एक जिन्दा लाश बना दे।


तुम कागज़ी कार्यवाही करते रहना

ये अत्याचार बढ़ते ही जाएंगे 

घर पर लड़की को बैठाते रहना

पर समाज की सोच नहीं बदल पाएंगे।


इंसाफ-इंसाफ चिल्लाते -चिल्लाते

गला रुंध चुका है अब तो

गुहार लगा रही है एक माँ 

अरे न्याय दे दो अब तो।


वो शीशे में खुद को देखेगी

तो कितना गम मनाएगी 

अपने लड़की होने पर 

जब वो खुद से रूठ जाएगी।


सत्ता के पास अफसोस है 

समाधान नहीं 

नारी उनके लिए सिर्फ एक खिलौना है 

उसके प्रति कोई सम्मान नहीं।


निर्भया हो या हो असफा 

इनके साथ अन्याय हुआ ये कैसा 

जैसे इंसानियत मर चुकी हो

अब तो लग रहा है ऐसा।


एक दिन ऐसा आएगा 

जब ये देश खत्म हो जाएगा 

इस देश को बेटी देने में 

ऊपर वाला भी घबराएगा।


कुछ दिन और लोग

उसके मरने पर दीप जलाएंगे

कुछ दिन और वो

पन्नो में सिमटकर रह जाएगी

फिर एक नया किस्सा खड़ा हो जाएगा

फिर किसी की बेटी तारों में छिप जाएगी।


कब तक किसी द्रौपदी या सीता को

अग्निपरीक्षा देनी पड़ेगी 

बलात्कार खत्म करना चाहते हो

तो अभी से सोच बदलनी पड़ेगी।


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