तन्हा
तन्हा
भीड़ बहुत हैं दुनिया
सब खोये-खोये से लगते हैं
सुकून नहीं हैं एक पल दिल को
मैं इतना अकेला तन्हा क्यों हूँ
कहने को तो हैं बहुत बड़ा ज़माना
हर एक दिन दुनिया बदली हैं
मॉडर्न युग में आकर भी
मैं इतना अकेला तन्हा क्यो हूँ
रंग रौनक सब फिकी हो गयी
ना जाने कौन-सा हवा चला सब बिजी हो गए
सुख सुविधा तो बहुत हैं
मैं इतना अकेला तन्हा क्यों हूँ
रहते तो हैं एक ही घर में
मुलाकात नहीं हो पाती हैं
मोबाइल की दुनिया में खोकर
मैं इतना अकेला तन्हा क्यो हूँ...