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Gaurav Shrivastav

Abstract

5.0  

Gaurav Shrivastav

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थोड़ा - थोड़ा

थोड़ा - थोड़ा

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दुनिया बदनाम है,

क्यों ना हम भी हो जाय थोड़ा,

सब कुछ जायज़ है,

क्यों ना हम भी कर जाय थोड़ा।


राह चलते मुसाफिर से गुज़ारिश क्या करना,

वो खुद अपनी मंजिल से दूर है थोड़ा।

किसी असफल को प्रोत्साहित क्या करना,

वो खुद अपने तपन में झुलस रहा है थोड़ा।


कैदी से जुर्म क्या समझना,

वो खुद अभी अपनी हैवानियत से हैरान है थोड़ा।

बच्चो से बचपना क्या करना,

वो खुद अभी अपने स्थिति से परेशान है थोड़ा।


दिल का दिमाग से तुलना क्या करना,

वो खुद अपनी धड़कन से अलग हो रहा है थोड़ा।

प्यार में पड़े आशिक से दर्द क्या पूछना,

वो खुद अपने अंजाम से अनजान है थोड़ा।


ग़रीब से गरीबी क्या करना,

वो खुद अपनी हालत से बैचेन है थोड़ा।

अमीर को अमीरी क्या पूछना,

वो खुद अपने शोहरत में मसगूल है थोड़ा।


चोर से चोरी क्या करना,

वो खुद अपनी मजबूरी से मजबूर है थोड़ा।

आने वाले वक्त से समय क्या पूछना,

वो खुद भूत-वर्तमान में फंसा है थोड़ा


डर-डर के क्या जीना,

जब मरना ही है हर दिन थोड़ा थोड़ा।

असफलता से क्या डरना,

जब सफलता तेरा इंतजार कर रही है थोड़ा।


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