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Arti Tiwari

Others

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Arti Tiwari

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तुम्हारा प्रेम

तुम्हारा प्रेम

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तुम्हारा प्रेम वैसे ही समाता गया मेरे वजूद में

जाड़ों की गुनगुनी धूप समाती है काया की ठिठुरन में

अपनी तमाम असहमतियों और नापसन्दगियों के बावज़ूद

आते गए करीब बेखबर से हम एक दूजे को इत्तला किये बगैर

मन होते गए एक दूध में घुली मिस्री की तरह

मेरे तुम्हारे भिन्न परिवेश

कभी आये नहीं आड़े

मैं नही बना पाती मक्के की रोटी और अफीम की भाजी

तुम नही खा सकते दाल चावल रोज़

भुला दिए हमने जाने कब के ये निरर्थक मसले

मौसमों के मिजाज़ बदलते रहे हम होते गए निकटतम

पता भी नही चला मेरी सारी दोस्तियाँ लिंगभेद से परे

जैसे सहज हैं तुम्हारे लिए मेरे लिए वर्णभेद से इतर

तुम्हारी इच्छाएँ महत्वपूर्ण जीवन के हर क्षण को

आनन्द से जीते भुला दीं परेशानियाँ

मौलश्री के फूलों सी झरती रही

हमारी संयुक्त हँसी घर के आँगन में

रिश्तों की सघन बुनावट को जीते

अहम भूलकर करते रहे मान

अपने पराये का

तुम्हारे रोपे पौधे को सींचती रही मैं

किसी भी प्रतिदान की आकांक्षाओं से परे

तुम एक प्रकाश स्तम्भ से थामे मेरी बाहें

अंधेरों से बचाकर हर बार ले आते किनारों पर

जहाँ बुनते रहे मेरे शब्द हमारे प्रेम की कविता सदियों से

 


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