तुम
तुम
आस थी तुमसे मिलने की
जिसे लिये मैं चलती रही
या कहूँ मैं जीती रही
मिले भी तुम इस हाल मैं
समझ न आया
खुद पर हँसू
या किस्मत पर
चाह कर भी
न हो पायी तेरी
पर चाहत दिल की
रह न जाये अधूरी
बयाँ कर
वर्षों की कसक पुरी
पर तुम्हे परवाह नहीं
तो फ़िक्र मुझे भी नहीं
जो दिल में हो
उसे भुलने का डर नहीं
क्योंकि मेरे लिये
हमेशा
तुम मेरे ही रहोगे
बस मेरे ही रहोगे...।