Sanjay Pathade Shesh
Tragedy
सरकारी पुल
हर साल ध्वस्त
जनता होती त्रस्त
ठेकेदार की
योग्यता का
क्या दे सबूत?
उनकी निजी
इमारतें देखो
कितनी मजबूत
रेवड़ी
जनप्रतिनिधि
अजब दौर है
आदत
श्रद्धा बनाम ...
मोहरा
मोहरे
विश्वास
आश्वासन
हाइकू रचनायें
यूंँ तो कोई उम्मीद नहीं नजर आती तुझे पाने की इसलिए मोतज्जा़ पर मौकूफ़ लाज़मी है। यूंँ तो कोई उम्मीद नहीं नजर आती तुझे पाने की इसलिए मोतज्जा़ पर मौकूफ़ लाज़मी...
हर कोई जल रहा प्रतिशोध की आग में जल रही है मानवता, देखो उठ रहा है धुआँ कहीं ।। हर कोई जल रहा प्रतिशोध की आग में जल रही है मानवता, देखो उठ रहा है धुआँ कहीं ...
क्या गुड्डा, क्या गुड़िया, घात लगाए भेड़िया, माँ कैसे सुनाए तुमको, मीठी मीठी लोरियाँ! क्या गुड्डा, क्या गुड़िया, घात लगाए भेड़िया, माँ कैसे सुनाए तुमको, मीठी मीठी...
प्यार हद तक रहे तो ही अच्छा वरना प्यार में पागलपन नहीं होना चाहिए। प्यार हद तक रहे तो ही अच्छा वरना प्यार में पागलपन नहीं होना चाहिए।
रुपये-पैसे को ही दोस्त कहता रहा मेरे लिये तुझसे बड़ी दौलत न थी रुपये-पैसे को ही दोस्त कहता रहा मेरे लिये तुझसे बड़ी दौलत न थी
न तोड़ी जाऊँ अपनी डाली से कभी, न मसली जाऊँ, न कुचली जाऊँ, न तोड़ी जाऊँ अपनी डाली से कभी, न मसली जाऊँ, न कुचली जाऊँ,
टूटी ख़्वाहिशें, रूठी तकदीर है कोई क्या करे। टूटी ख़्वाहिशें, रूठी तकदीर है कोई क्या करे।
रेगिस्तान में बारिश की ख़्वाहिश एक कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं! रेगिस्तान में बारिश की ख़्वाहिश एक कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं!
अज्ञात दिशा नाहि मंज़िल का पता कटीली राहों पर चलते जिए जा रही हूँ। अज्ञात दिशा नाहि मंज़िल का पता कटीली राहों पर चलते जिए जा रही हूँ।
इतना दर्द मत दे अब मुझे, मै सहने के काबिल नहीं! इतना दर्द मत दे अब मुझे, मै सहने के काबिल नहीं!
अपने हक केेेेे लिए दर-दर भटक रहा बूढ़ा किसान।। अपने हक केेेेे लिए दर-दर भटक रहा बूढ़ा किसान।।
मैंने पलट कर देखा उसकी आँखों में था उम्मीद का गहना… मैंने पलट कर देखा उसकी आँखों में था उम्मीद का गहना…
दम घोटती दरिद्रों की, यह कन्याओं की विपदा है। दम घोटती दरिद्रों की, यह कन्याओं की विपदा है।
हमको वफा मिले न मिले, तुमको सजा जरूर मिले। हमको वफा मिले न मिले, तुमको सजा जरूर मिले।
दीवारें, नहीं बोलती..! बस कर देती, अपना काम दीवारें, नहीं बोलती..! बस कर देती, अपना काम
दुनियां का ये नज़र का चश्मा, थोड़ा सा मैं हटाना चाहूं ! दुनियां का ये नज़र का चश्मा, थोड़ा सा मैं हटाना चाहूं !
जब से गरीबी को मैंने जाना ख्वाब देखना छोड़ दिया! जब से गरीबी को मैंने जाना ख्वाब देखना छोड़ दिया!
दर्द के संताप को, बाहों में लेकर रोता हूं। दर्द के संताप को, बाहों में लेकर रोता हूं।
क्यूंकी वो उंगलियां उस स्पर्श का कभी हिसाब नहीं करती ! क्यूंकी वो उंगलियां उस स्पर्श का कभी हिसाब नहीं करती !
ना रहा आजाद कोई मर्द है शर्तों में उलझा जीवन-चक्र है ना रहा आजाद कोई मर्द है शर्तों में उलझा जीवन-चक्र है