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pankaj mishra

Abstract

4.0  

pankaj mishra

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ये जीवन ऐसा क्यूँ होता है..

ये जीवन ऐसा क्यूँ होता है..

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हर एक तरीका विफल हुआ

न प्रश्न अभी तक हल हुआ

कोई हँसता है कोई रोता है

ये जीवन ऐसा क्यूँ होता है


सुख की चाहत सब रखते हैं

दुख नाम से ही सब डरते हैं

रुपयों में सब कुछ बिकता है

अरमान कहाँ यहाँ टिकता है


आगे बढ़ने की होड़ मची

नित नई साजिशें जाएं रची

सब प्रथम आने को लगे हुए

कुछ तो अस्मत भी बेच दिए


सबको बंग्ले और कार दिखें

और गाँव इन्हें बेकार दिखें 

हर ओर फैली बीमारी है

चित्रों में जीना जारी है


हर ओर यहाँ घोटाले हैं

बाहर से दिखते गोरे हैं

लेकिन अंदर से काले हैं

ईमान कहाँ अब बचा यहाँ

हर कोई गया है ठगा यहाँ


सब मिट्टी से ही बने हुए

सब मिट्टी में ही मिल जाते हैं

फिर जाने क्यों लोग यहाँ 

खुद पर इतना इतराते हैं

जब अंतिम क्षण आते हैं

तो भजन-कीर्तन गाते हैं


और शांति की खोज में

तीर्थ दर्शन पर जाते हैं

कोई पाता है और कोई खोता है

मुझको ये बतला दो कोई 

ये जीवन ऐसा क्यूँ होता है।


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