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Tejas Poonia

Inspirational

3  

Tejas Poonia

Inspirational

“दोस्त पाकिस्तान का”

“दोस्त पाकिस्तान का”

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वो दिखता भी मुझ जैसा है
वो लिखता भी मुझ जैसा है
वो खाता भी मुझ ही जैसा है
उसका सारा काम लगभग
मुझ जैसा ही है
बस फ़र्क इतना है
वो मुसलमान है और
मैं हिन्दू
वो पाकिस्तानी है
मैं भारत का
उसके मेरे देश में
रहन-सहन, खान-पान
रीत-रिवाज, तीज-त्यौहार
सब एक से हैं
बस,
फिर फ़र्क क्या है?
सिर्फ़ एक सरहद का!
बरसों पहले अंग्रेजो की ग़ुलामी से
आज़ाद हुआ मुल्क एक
बन गए दो देश
एक मेरा भारत
एक उसका पाक
गुलामी की दास्तां में
झेंले होंगे अनेकों अत्याचार
उसके भी पूर्वजों ने
मेरे भी परिवार वालों ने
जैसा झेला है मेरे बाप-दादाओं ने
वैसे ही झेला होगा उसके नाना-भाऊ ने
उजड़ी थी गोद
उसके भी वतन में लाखों माँओं की
सूनी हुई हजारों कलाई मेरे भी देश में
विधवा के वैधव्य को देखा
गर्भवती के गर्भ को गिराते देखा
बच्चे-बूढ़े
सबका रहा हाल एक सा
है आज भी अमुमन वैसा
सत्ता में खामियाँ हैं
इधर भी, उधर भी
शासन में दुराव है
इधर भी ,उधर भी
संबंधों में मिलन है
इधर भी उधर भी
है कड़वाहट उधर भी इधर भी
कुछ तरकार है
धर्म की
धर्म बंटता है
ऊंच नीच के गलियारों में
यहाँ भी वहाँ भी
कोई राम उसके भी है
कोई अल्लाह मेरे भी है
वेद जैसे मेरे है
है कुरआन उसके भी
ना उसका ईश्वर सर्वशक्तिशाली रहा है
ना मेरा भी
न्याय को अन्याय मार देता है
सच पर झूठ वहाँ भी हावी है
कोई रावण मेरे भी बलशाली है
मंदी का आलम है एक जैसा
टमाटर में सब्जी डालती है
उसकी भी ख़ाला
मेरी भी आई
तो क्यों है इतनी समानता के भी
दूरियां और मतभेद
वो मेरा दुश्मन
मैं उसका दुश्मन क्यों है
उसका ख़ास नहीं तो आम तो है मेरे जैसा
क्या वो नहीं चाहते अमन-शान्ति?
चाहता हूँ तरक्की करे
उसका भी देश मेरा भी देश
मेरे देश की सीता
उसके देश की सलमा
देती है एक जैसी अग्नि परीक्षा
इसी बहाने हाल-चाल पूछ बैठता हूँ
मैं पूछता हूँ
क्या स्कूलों में हिंदी है वहाँ
तो वो पूछता है
क्या कुरआन पढ़ाई जाती है यहाँ
कुछ सोच कर फिर
आगे बढ़ जाते हैं दोनों
और आता है एक ब्रह्मराक्षस
मज़हब का
जैसे जड़ें जमाई है उसने वहाँ
वैसे ही मेरे भी
एक स्त्री की दुर्दशा है
एक सी यहाँ भी
वहाँ भी
रोज़ मरते हैं हजारों भूख से आकुल हो
लाखों भिखारी बैठते
सर्वशक्तिमान के चौखटे पर
उसके भी मेरे भी
न जाने कितना दूध बहा दिया जाता है
मेरे देश में उस बेज़ान मूरत पर
तो न जाने कितना खून बहा दिया जाता है
उसके यहाँ मन्नतें माँगते माँगते
सब सवालों के एक ही उत्तर मिलते हैं
निरुत्तर
हाँ
प्यार करते हैं उसके भी लोग
मेरे भी लोग
उसके शीरी-फ़रहाद
मेरे लैला-मजनूं
आपस में भूल धर्म मज़हब को
तोड़ समाज की सामन्ती सोच
निकल जाते हैं एक अमर-प्रेम के मार्ग
पर स्वीकार नहीं होता उसके भी
तथाकथितों को
मेरे भी सामन्ती ब्रहामण समाज को
फिर भी एक अच्छी बात है
उसकी
उसके सब मुस्लिम मुस्लिम हैं
मेरे हिन्दू हिन्दू होकर भी
सिख हैं, ईसाई है, बौद्ध हैं
मुझे पाकिस्तान से भी प्यार है
उसे हिन्दुस्तान से भी महोब्बत है
बस एक ख़्वाहिश है दोनों की
चाहतें हैं अमन प्रेम रहे
उसके भी मेरे भी

 


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