अस्पृश्यता
अस्पृश्यता
अँगुलियाँ
छोडो
कि अब मै
अपने पाँव पे
चलने लगा हूँ
भीड़ में भी
खुद को
दिशा देने
लगा हूँ।
लोग कितने
उलाहने
देने लगे हैं
हाँ तुम जननी हो
पर अब मै
दुधमुहा नहीं हूँ।
जन्म से पहले
जात तय
करने की
जुंबिश
मै ऐसी
रिवायतों से
डर गया हूँ।
यह कौन है
जो खुद से
चलने भी
नहीं देता
परजीवी
बनाने के
स्याह स्वप्न से
मै डर गया हूँ।
अँगुलियाँ
छोडो
कि अब मै........