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Shalinee Pankaj

Abstract

3  

Shalinee Pankaj

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बात बचपन की

बात बचपन की

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वो जिद थी मेरी

हर बात में जिद करने की

बचपना यही तो है

बस मनमानी करने की

तब तक 

जब तक मम्मी से

तबियत से कुटाई न हो जाये

गुस्सा होना

पल भर के लिए

पापा के मनाने के इंतजार तक

कभी रोना

बेवजह

सौ बार कारण पूछने पर

अकड़ से बताना

बच्चे गलती कहाँ करते है

उन्हें ग़लतियों का पता ही नहीं होता

और जब पता होता है

बचपन से बढ़े तक का

वो सफर पूरा कर लेते है

बेख़ौफ़ जिंदगी 

बचपन की

माँ का आँचल ममता की

हर धूप से बचा ही लेती

वो पसन्द वाली मिठाई भी

अपने हिस्से की खिला देती

अब ढेरों मिठाई सामने हो

माँ के हाथों का स्वाद किसी मे नहीं


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