Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Deepa Joshi Dhawan

Inspirational Others

4.7  

Deepa Joshi Dhawan

Inspirational Others

स्वयंसिद्धा

स्वयंसिद्धा

1 min
5.6K


हे पुरुष,


जब मेघ सदृश्य हो गरजते

फिर मेह समान तुम बरसते

जल में भीगी एक मशाल से

न बुझते ही हो न तुम जलते

कदाचित प्रतीत तुम्हें मात्र 

मैं दुर्बल अबला दुखियारी

तेरी सहस्त्र गर्जनाओं पर है

सदैव मेरा एक मौन भारी


दृष्टिकोण क्यों स्वार्थ भरा

निभा प्रत्येक दायित्व मेरा

किंचित विलंब से है उदित 

स्वावलंबन का आदित्य मेरा

अथक यत्न और परिश्रम से

एकत्रित आत्मशक्ति सारी

अंतर्मन की किसी कंदरा में

जीवित रख छोड़ी चिंगारी


सहनशील एवं करुणामयी

प्रत्येक स्त्री का गौरव क्षमा

किंतु स्मरण ये रहे अवश्य

स्त्री से संभव सृष्टि रचना

व्यर्थ है ये पुरुषार्थ तुम्हारा

भावना यदि अहम से हारी

निर्लज्ज समाज मौन जब

बनी रणचंडी बांध कटारी


मैं मातृशक्ति हूँ मैं भगिनी

मैं सखी मैं ही सहगामिनी

सर्व स्वरूप हैं आदरणीय 

समझो न केवल कामिनी

मैं लक्ष्मी और मैं सरस्वती

मैं ही देवी कालिका संहारी

सृजन कभी तो मर्दन कभी

मैं नारी, मैं नारी, मैं नारी!!!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational