डोर
डोर
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मुझसे तुझ तक जाती है
तुझसे मुझ तक आती है
एक डोर
डोर जो जोड़ती है
मुझे तुझसे
तुझे मुझसे
छिटक जाती है हाथों से कभी
फिर दौड़ कर थाम लेता हूँ
टूट जाती है कभी उलझकर
तो कभी तनाव से
कभी जोड़ लेती है तू
कभी मैं बांध देता हूँ
गाँठें बहुत हैं तो क्या
डोर आज भी जोड़े हुए है
तुझे मुझसे
मुझे तुझसे