स्व-मूल्यांकन
स्व-मूल्यांकन
जमाने भर की जिद,
जेहन में रक्खा करो,
जहाँ जरूरत हो,
सुधरने की जगह भी,
रक्खा करो।
गहराइयों से, बदन से,
समन्दर बहुत विशाल सही,
गला सूखे तो,
दो घूँट पीने का पानी भी,
कहीं रक्खा करो।
वक्त मिल जाए तो,
किसी रोज आईना,
देखना जरूर,
तय करना कि,
क्या बदलना था,
तुमने क्या बदल डाला।
फिर रेत पे लकीरें,
फिर समन्दर पे किले,
अरे कभी जमीन पे भी,
बेघरों का घर बना डालो।
कभी किताब में पढ़ी तो होंगी,
किसी सुखनवर की कोई नज्म,
यह जिन्दगी है, यहाँ खुद ही,
सुखनवर होना पड़ता है।