जलकर मिल जाऊँगी खाक में मैं
जलकर मिल जाऊँगी खाक में मैं
जब जलकर मिल जाएगी खाक में मैं,
धुंए से थोड़ी ऊपर उठ जाएगी, राख में मैं,
वो खामोश हँसी भी होगी धुँआ,
जब आँखों से गिरकर मिल जाएगी, राख में मैं,
तुम्हे ना होगी परवाह ज़िंदगी की,
जब तू आकाश को छूती जाएगी, पाताल में मैं,
आज रो रही बैठी रात में मैं,
ताउम्र रखा जिस आत्मा को गुलाम, उससे अलग हूँ मैं,
अब पछताने से क्या होता है, तू है खाक में मैं,
ये शरीर तो मिल गया है, राख में मैं,
अब ढूंढती फिरती है कोई और दरवाज़ा, रात में मैं,
उसी को कहेगी ज़िंदगी बिता दूंगी, तेरे साथ में मैं,
जीते जी तो अभिमान रहेगा, मरने पर राख में मैं,
चार दिन की ज़िंदगी है हँसकर बिता लो,
कल न जाने तुम कहाँ हो, और कहाँ हूँ मैं...