सिर्फ़ तुम्हारे लिए
सिर्फ़ तुम्हारे लिए
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समझ में नहीं आता अब…
किस नाम से पुकारूँ तुम्हें !
नाम बदल भी जाए अगर
तुम तो 'तुम' ही रहोगी…
तो बिना सम्बोधन ही सही
जहाँ भी हो – सुन लो,
देख सको तो देख लो।
कभी जो जुनून की हद तक
दीवाना था फ़क़त तुम्हारा
आज बिछड़ कर तुमसे...
तुम्हारी 'जानलेवा' जुदाई में,
इस ग़म का दामन थामे
लगभग जी ही रहा है !
और वह नहीं भी जीयेगा…
तो इस ग़म से क़तई नहीं;
क्योंकि किसी की मोहब्बत में
मरने को महज़ एक वहम
साबित करना ही है उसे…!!