"घ"
"घ"
"घ" से वो "घनघोर" "घटाऐं" जो आसमान में छाती है
"घिर" आती जब आसमान में "घना" अँधेरा लाती है
"घोर" बरखा लाती है वो, मन को वो हर्षाती है
"घ" से ही वो "घना" सा वन है
जहाँ "घर " है जीवन का, जहाँ प्रकृति "घरौंदा" बनाती है
"घ" से वो "घातक" सच है, जो हममें "घृणा" लाता है
"घ" से ही है वो "घर" जहाँ जीवन पर्याय पता है
"घ" से ही है वो "घोंसला" जहाँ चिड़िया नऐ परिंदे लाती है
"घ" से है वो "घमासान" जी मन में उत्पात मचाता है
"घ" से है वो "घोषणाऐं" जो चुनावों में की जाती है
"घ" से ही है वो "घाव" जो ये वेदनाऐं दे जाते हैं
"घ" से ही है वो "घमंड" जो हमें अहम् के "घेरे" में "घेर " देता है