आत्मावलोकन
आत्मावलोकन
स्वयं को खोजने का एक प्रयास
मैं; इक झरना
निर्झर झरता
दिशाहीन----- उद्दाम भाव से
बहता रहता
पथ ............... तय करता.
मैंने कब जाना !
-------------- संयम क्या है ?
जंगल क्या और
-------------- उपवन क्या है?
कूल--किनारे चट्टानें थीं
बीहड़ थे -------- वीराने थे
और ; भोली इनकी मुस्कानें
थीं.
मुझे पता है ---अल्हड़ता थी
सौंदर्य का अतिरेक भी होगा
निरुद्देश्य थी ; मगर यात्रा
रहा निरंकुश वेग भी होगा.
छुआ आपने अन्तर्मन् को
समझा तब जीवनदर्शन को
लगा कोई " पारस पत्थर "
कर रहा स्पर्श ................
..........मैं ! " लौह अयस्क ".