एक ऐसा भी मंजर देखा
एक ऐसा भी मंजर देखा
रंग बदलती दुनिया का,
एक ऐसा भी मंजर देखा।
शर्मीली आँखों में मैंने,
इश्क़ का समंदर देखा।।
डूबता रहा, उस असीम गहराई में;
होश तब आया, जब प्यार में;
तन्हाई का खंजर देखा।।
यूँ तो दुनिया, हर कदम पर, मुझे रोकती रही;
संभलता कैसे, पहली बार जो मैंने;
इश्क़ का बवंडर देखा।।
सोचता हूँ 'नवीन' अपनी मूर्खता का,
मैं क्या नाम दूँ।
हर पराजित आशिक में मैंने,
दर्द-ए-शायरी का सिकंदर देखा।।