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Ratna Pandey

Drama Tragedy

5.0  

Ratna Pandey

Drama Tragedy

चाँद और सूरज का दर्द

चाँद और सूरज का दर्द

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हो गई है भोर सूरज आ गया है,

यत्र तत्र सर्वत्र लालिमा अपनी बिखरा रहा है।

है बहुत ही ख़ुश आज कुछ अच्छा ही होगा,

दे रहा हूँ प्रकाश अपना सर्वस्व यहाँ मैं।

पर यह क्या, जो कल था,

वो ही आज भी मैं देख रहा हूँ।

यत्र तत्र सर्वत्र यहाँ पर कोई सदाचार नहीं है,

केवल पाप ही पाप है यहाँ पर।

हो गया नाराज़ सूरज चढ़ गया सिर पर,

दिखा दिया ४५-५० का तांडव धरा पर,

शायद सुधर जाए सब यहाँ पर।

पर उसे नहीं पता यह इंसान किस मिट्टी का बना है,

वह नहीं सुधरेगा कभी, वह नहीं बदलेगा कभी।


थक गया सूरज अब शाम हो आई

होकर निराश वह जाने लगा और कहीं।

जाते जाते चंदा को बुला गया वो,

बातें उसको समझा गया वो।


मैं थक गया हूँ अब तुम संभालो,

अपनी ठंडक से सभी की गर्मी मिटा दो।

मैं कल फिर से आऊँगा,

कुछ अच्छा समाचार तुम मुझे देना।


अब बारी चंदा की थी,

देकर अपनी ठंडक सभी को वो बहुत खुश था।

सब सुधार दूँगा मैं, इसी उधेड़बुन में मन था।

तभी अचानक ज़ोर की चीखें उसे आईं,

नीचे देखा तो आँख उसकी डबडबाई।


कहीं था चीरहरण,

कहीं भाई भाई का झगड़ा था,

कहीं चोरी डकैती थी

और कहीं लाल रंग गहरा था।

क्या जबाव दूँगा कल जब सूर्य आयेगा,

होकर उदास वो गड़ा जा रहा था।

तभी द्वार पर दस्तक फिर सूर्य ने दे दी,

देख उदास चाँद को उसने कुछ नहीं पूछा।

जाओ तुम चले जाओ अब मेरी बारी है,

जब तक सांस है तब तक आस है

बस ये ही कहानी हमारी है।।




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