आब्रु
आब्रु
तूफान का संदेशा था,
आसमां में कड़की बिजली,
जब दुप्पट्टा खंबे से उड़ा,
और शरीफ की नजर फिसली ।
अनदेखा किया सबने दिन को,
काली रात मान ली,
कर लिया अंधा खुद को,
पट्टी आँखो पे बांध ली ।
घायल हुआ दिल,
चीख आँखो से निकली,
दाग दामन में लगा,
पगड़ी दरबार में उछली ।
अश्कों की बारात आयी,
हमदर्दी घोड़ी पे लायी,
सब वादे यहाँ झूठे हैं,
और आँसू भी हैं नकली।