अब तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता
अब तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता
न जाने क्यों मुझे अब कभी-कभी
अजीब ख्याल आते हैं
मै सोचता हूँ कि अब
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है
मैं तुमसे रूठ भी जाऊं
तो तुम्हे क्या फ़र्क़ पड़ता है ?
तुम्हारे पास न आऊं
तो तुम्हे क्या फ़र्क़ पड़ता है
मै तुमसे दूर चला जाऊं
तो तुम्हे क्या फ़र्क़ पड़ता है
कभी तन्हा तुम्हारी याद में
आंसू बहाऊँ तो तुम्हे क्या फ़र्क़ पड़ता है
तुम्हारी याद में खुद को मैं भूल जाऊ
तो तुम्हे क्या फ़र्क़ पड़ता है
मै कभी तुमसे दूर रह कर
अकेला मर भी जाऊं तो तुम्हे क्या फर्क पड़ता है
मै जानता हूँ कि गलत सोचता हूँ
पर शायद अब तुम्हे कोई फर्क नहीं पड़ता !