राम की जानकी
राम की जानकी
है इस कथा में आत्मा बसी जहान की
क्यों राम जी से दूर जा रही है जानकी
कसम पुरूष तुम्हें, तुम्हारे स्वाभिमान की
रोक लों उन्हें कसम है राम जान की
रो रही पवन है, संध्या विहान की।
जो तुम्हारें साथ कष्ट भोगती रही
है जिसके बल पे, आज भी ये घूमती मही
प्रश्न कर रहा हूँ मैं तुमसे समाज ये
उस मही में क्यों समा गयी है जानकी
अग्नि परीक्षा क्यों सदा देती है जानकी।
ऐसी परीक्षा कब हुई पुरुष महान की
बात है ये सभ्य सभ्यतम समाज की
चीत्कारती है आत्मा विधान की
सदियाँ गुजर गयी है ये घटना घटित हुए,
पर आज भी है राम के ही साथ जानकी।
जानकी बिना न राम नाम पूर्ण है
राम प्राण है तो प्राण वायु जानकी
इस कथा में आत्मा बसी जहान की
क्यों राम जी से दूर जा रही है जानकी।।