दरवाज़े की ओट
दरवाज़े की ओट
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रोज़ जब तुम
ऑफिस के लिए
निकलते हो तो
मैं दरवाज़े की
ओट में खड़ी हो जाती हूँ
कहती कुछ नहीं तुमसे
पर मन ही मन
तुम्हारी सेहत
तुम्हारी सलामती की
दुआ माँगती हूँ
और ये विश्वाश
दिलाती हूँ तुमको की
हमारे संसार, बच्चों
और बड़ों का मैं
पूरा ध्यान रखूंगी
ताकि जब तुम बाहर रहो
तो सुकून से भरा रहे
तुम्हारा दिल
ये विश्वास रहे मन में की
तुम शाम को
खिलखिलाते घर और
मुस्कुराते चेहरों को देखोगे
ये इसलिए नहीं करती की
तुम पुरुष हो और मैं स्त्री
कमाना तुम्हारा धर्म और
घर संभालना मेरा कर्तव्य
बल्कि ये इसलिए करती हूँ
क्योंकि मैं तुमसे
बेइन्तहा प्यार करती हूँ।।