जीवन की सच्चाई
जीवन की सच्चाई
ना ही किसी को जानते हैं,
ना ही किसी को पहचानते हैं,
हो जाती है सब से दोस्ती,
अपने से सब लगने लगते हैं।
दूर हैं सब कोई पास नहीं,
फिर भी लगते करीब-करीब हैं,
नहीं ये रिश्ता दिलों का,
ये बन्धन तो है रूहों का।
सब की खुशी में हँस लेते हैं,
सब के गमों में रो लेते हैं,
सब से रूठ जाते हैं कभी,
सब के करीब फिर हो जाते हैं।
कुछ साथी जो सफर में छूट गए,
वो क्यों छूटे क्या ये सोचा कभी,
वो दुनिया से चले गए तो अलग बात है,
अगर वो रूठ गए तो उनको मनाया क्यों नहीं।
ये सवाल हम को जिंदगी के किसी मोड़ पर,
परेशान जरूर करेगा।
ये ही जीवन की सच्चाई है।