"मैं प्यार कहता नही हूँ"
"मैं प्यार कहता नही हूँ"
नजरें जिसका दीदार करते हुए नहीं थकती,
मैं उन नयनों को कभी जीभर देख पाता नहीं,
शिथिल-सी दबी बातो को तेरे खो जाने के भय से,
तुझसे कह नहीं पाता हूँ, मैं प्यार कहता नहीं हूँ।।
अजनबी बनकर आये हम, अजनबी बनकर तुम,
हमारे मन मे तुम अपने बने,तुम्हारे मन मे हम क्या?
तुझे देखकर जीना सीखा, प्रेम करना कुछ सीखा,
तुझसे पीड़ा कह नहीं पाता हूँ,मैं प्यार कहता नहीं हूँ।
कुछ कहानी उलझनों से भरी हुई -सी लगती,
तेरा कुछ चित्त कहीं और को ललायित-सा है।
मेरा मन तेरे मन की ओर को उत्साहित लगता है,
तुझसे कह नहीं पाता हूँ,मैं प्यार कहता नहीं हूँ।।
नहीं जानता मैं खुशी दे पाऊंगा की नहीं,
तारों से तेरी माँग सजाऊंगा की नहीं।
पर लगे दाग दमन पर तेरे मैं मरके भी मिटाऊंगा,
तुझसे तुझे चुरा नहीं पाता हूँ,मैं प्यार कहता नहीं हूँ।।
लिखी कितनी नज्में तुझे बोलने को,
गजलों में तुझे मैं बहुत कुछ कह गया।
नहीं समझी तो गलती तुम्हारी नहीं इस बात में,
तुझसे कह नहीं पाता हूँ, मैं प्यार कहता नहीं हूँ।।
तेरी खुशी के लिये मैं स्वयं बरबाद हो जाऊं,
तुझे देखूं आबाद तो समझू दुआ मेरी मंजूर है।
हर हार में मेरी तेरी जीत हो तो मैं हारा ही सही,
तुझसे दीदार नहीं पाता हूँ, मैं प्यार कहता नहीं हूँ।।
कोशिशें हुई बेकर-सी अधरों पर आकर,
शब्दों के अर्थ बदल जाते अर्थो में शब्द घुलकर।
कहना कितना कठिन हो जाता है मैं सहता हूँ,
तुझसे कह नहीं पाता हूँ, प्यार में कहता नहीं हूँ।।