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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

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Asmita prashant Pushpanjali

Drama

कलम

कलम

1 min
1.3K


कुछ तलाश रही है कलम मेरी।

बयां करने अपने जज्बात।


अल्फाज है कि निकलते ही नहीं।

कहने को अपने जज्बात।


ये कैसी चुप्पी है,

अंधेरों के साये में।


घिर आती हैं

काली परछाई बन के।


जुबां पे ताले से पड़े हैं।

और नजर है खामोश सी।


पर धुँआ उठ रहा है अरमानों का।

जैसे लौ जल रही हो किसी चिता की।


ये कैसी सुनसान राहें हैं।

हम जिस पे चले जा रहे हैं।


शोर तो है हर तरफ।

मगर सन्नाटे से घिरा है।।


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