डायरी के खाली पन्ने
डायरी के खाली पन्ने
मेरे शब्द कहीं खो गए हैं,
शून्य से जड़ हो गए हैं।
बिस्तर पर मृत पड़े जज़्बात
उठना चाहते हैं,
कागज़ पर दो कदम चलना चाहते हैं।
लेकिन शब्द है कि मिलते ही नहीं,
मृत होते जा रहे हैं कहीं ना कहीं, मेरी आत्मा की तरह
देह मरती है अक्सर, आत्मा का मरना कभी ना सुना होगा,
होता है कई बार ऐसा भी देह तो जीवित रहती है, लेकिन आत्मा मर जाती है।
कितनी भयावह होती होगी यह स्थिति,
जब जज़्बातों की भरमार तो होती है भीतर,
पर उन्हें अभिव्यक्ति नहीं मिल पाती है।
कभी-कभी दिल को सिर्फ ख़ालीपन की अनुभूति होती है, भीतर भी और बाहर भी।
ख़ाली आंगन में शब्दों की उपज कहाँ होती है?
बंजर पड़े मन पर सिर्फ पत्थर और दरारें ही दिखती हैं,
आंसुओं की बारिश भी वहां नहीं होती है।
हाँ होता है ऐसा भी कभी-कभी जिंदगी में,
जब भावनाएं और शब्द खो जाते हैं।
और मेरी डायरी के पन्ने फिर से यूँ ही खाली रह जाते हैं, मेरे मन की तरह।